सरकारी नौकरी हेतु आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्ति हेतु दो बातें सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है । प्रथम है – छात्र द्वारा कठिन परिश्रम एवं दूसरा, जो प्रथम के ही समान महत्व रखता है –
”कुशल मार्गदर्शन”, जो छात्रों के हार्ड वर्क को स्मार्ट वर्क में तब्दील कर दे ।
“सुप्तस्ये सिंहस्य मुखे नहीं प्रविशन्ति मृगा:”
अर्थात् , सोए हुए सिंह के मुख में अपने आप हिरण प्रवेश नहीं करता । उसी प्रकार किसी भी सफलता प्राप्ति हेतु छात्र का प्रयत्नशील होना नितांत आवश्यक है । ”कठिन परिश्रम” ही सफलता का प्रथम सोपान (सीढ़ी) है ।
तत्पश्चात् जिस प्रकार श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कोटि के पत्थर को सुंदर मूर्ति में परिवर्तित करने हेतु एक कुशल शिल्पकार अपरिहार्य है, उसी प्रकार किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता गुरु द्वारा कुशल मार्गदर्शन के अभाव में संभव नहीं है ।
अक्सर यह विदित होता है कि प्रतिभाशाली से प्रतिभाशाली छात्र कठिन परिश्रम के उपरांत भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता से वंचित रह जाते हैं । ऐसा कुशल मार्गदर्शन के अभाव के कारण होता है । इस आलोक में प्रतियोगी परीक्षाओं के नित्य परिवर्तित हो रहे शैली को समझकर छात्रों का उचित मार्गदर्शन कर उन्हें सही दिशा में परिश्रम हेतु प्रेरित कर सफलता प्राप्ति कराना हमारा मूल आधार है ।